शनिवार, 18 जुलाई 2015

श्रीमदभागवत कथा का महात्म्य, षष्ठोsध्याय, श्रीमदभागवत सप्ताह यज्ञ की विधि


प्रिय पाठकों आप सभी नें श्रीमदभागवत जी के महत्म्य के पंचम अध्याय की कथा का रसपान किया, कथा रस हमें तभी सुलभ होता है जब लाला की कृपा होती है, क्यों कि कथा के रस की प्राप्ति हमारे प्रयास से असंभव है, हम रास बिहारी से प्रेम करें यह एक बात है परन्तु जब हमारे गोविन्द हमें प्रेम करते हैं तब हमें उनकी लीला रस के रसास्वादन का सुख सुलभ होता है,,,,

मित्रों आपने धुन्धुकारी व्याख्यान का रसास्वादन किया, छठे अध्याय की कथा में भागवत जी के सप्ताह यज्ञ की विधि के बारे में विस्तार से वर्णन है, सनकादि ने नारद जी को कथा का श्रवण कराया और उन्हें बताया कि कथा के आयोजन के लिये मुख्य छः महिने का चुनाव करना चाहिये:- भाद्र्पद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, आषाढ और सावन, परन्तु इन महिनों में भी कुयोग आदि का विचार उनका त्याग करना चाहिये, आयोजन के लिए सर्वप्रथम योग्य और समर्पित लोगों को अपना सहयोगी बनाना चाहिये और स्मस्त धार्मिक तथा भगवत प्रेमियों को कथा श्रवण के लिये सूचना अर्थात आमंत्रण भेजना चाहिये, कथा के अयोजन के लिये तीर्थ स्थान अथवा अपने निज निवास का चयन करना चाहिये, कथा के लिये कथास्थल को सुन्दर सजाना चाहिये व्यास का आसन ऐसा होना चाहिये कि श्रोताओं को आसानी से व्यास का दर्शन हो सके, भागवत जी साक्षात परमात्मा कृष्ण का स्वरूप हैं ऐसा विश्वास करना और दिन भाव से परमात्मा से विनमृ निवेदन करना चाहिये कि हे प्रभू आपकी कृपा से यह कथा यज्ञ सम्पन्न होना संभव हुआ है, मैं आपका दास हुं आप इस कथा यज्ञ को निर्विघ्न सफ़ल करें.....
   
कथा व्यास का चयन बहुत सावधानी पूर्वक करना चाहिये, व्यास ज्ञानी और भक्त होना चाहिये जो समस्त दृष्टांन्तों को सरलता और तत्वतः स्पष्ट वर्णीत कर सके, साथ ही कथा को श्रवण करने वाले लोगों को भी ब्रम्हचर्य, का पालन करना चाहिये व्रत करना चाहिये तथा भक्ति और समर्पण भाव से कथा का श्रवण करना चाहिये I

कथा की पूर्णाहूति के बाद हवन कराना चाहिये तथा उद्यापन करना चाहिये, परन्तु यह अपनी सामर्थ्य के अनुसार उचित रहता है इसके लिये कोई बंधन नहीं है, परन्तु कथा समापन के पश्चात व्यास और पोथी की पुजा करनी चाहिये........

कथा की बिधि आदि सनकादि ने नारद जी के समक्ष वर्णन कर दी, नारद जी वर्णन सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए....

सनकादि ने कथा समाप्त की तभी वहां शुकदेव जी का आगमन हुआ, सोलह वर्ष की उनकी आयु और परन तेजश्वी शुकदेव जी को देखकर नारद जी सहीत सभी सभासद खड़े हो गये, उन्होने शुकदेव जी को ऊंचे आसन पर बिठाया और देवर्षि नारद ने उनका पूजन किया....उसके पश्चात शुकदेव जी ने कहा, "हे रसिक भक्त जनों श्रीमदभाग्वत जी वेद रूपी कल्प वृक्ष का पका हुआ फ़ल हैं, और यह ऐसा फ़ल है जिसमें सिर्फ़ परमात्मा का अमृत रस ही भरा है इसमें ना तो छिलक है ना ही गुठली है...यह इसी लोक में अर्थात प्रथ्वी लोक पर ही सुलभ है, इसकि रचना महामुनि व्यास देव जी ने की है, और यह तीनों प्रकार के तापों अर्थात कष्टों से मुक्ति प्रादान करा देती तीनों प्रकार के कष्ट हैं दौहिक, दैविक और भौतिक कष्ट.....

यह रस सिर्फ़ इस धरती पर ही प्राप्त है इसेकी प्राप्ति स्वर्ग आदि लोकों पर नहीं है, इसलिये आप सभी श्रोता बहुत भाग्यशाली हैं इस रस का खूब पान करिये......

तभी प्रह्लाद, बलि, उद्धव, अर्जुन आदि पार्षदों के साथ भगवान श्री कृष्ण वहां प्रकट हो गये,,, देवर्षि नारद ने भगवान को सिंहासन पर विराज कर उनका पूजन किया सभी संकीर्तन करने लगे....उस दृश्य को देखने ब्रम्हा, शुव आदि सभी देवता भी आ गये..

संकीर्तन में प्रह्लाद जी करताल बजाने लगे, नारद जी वीणा बजाने लगे, अर्जुन राग से गायन करने लगे इन्द्र मृदंग बजाने लगे तथा सनकादि बीच बीच में परमात्मा का जयघोष करने लगे......

भगवान भक्तों के भाव पूर्ण कीर्तन से प्रसन्न हो रहे थे बैठे बैठे मन्द मन्द मुसकाते हैं परमात्मा .....कहते हैं इस दृश्य के देखने वालों के क्रतार्थ हो गये.....

तभी भगवान प्रसन्न होकर बोले, "हे भक्तों मैं तुम्हारे भक्ति भाव से अत्यन्त प्रसन्न हुं तुमने अपने भक्ति भाव से मुझे वश में कर लिया है, तुम लोग मुझसे वरदान मांगो"

भक्त भगवान के वचनों को सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होने कहा, "हे प्रभू हमारी यही अभिलाषा है कि भविष्य में जब भी कहीं आपकी कथा हो तो आप वहां अपने पार्षदों के साथ आवश्य पधारें" 

इसके पश्चात नारद जी ने भगवान को प्रणाम किया सभी को आनन्द की प्राप्ति हुई, सभी के हृदय पवित्र हो गये सबका मोह नष्ट हुआ, आनन्दित होकर कथा के बाद सभी लोग अपने अपने स्थानों को चले गये........

कथा कहती है कि सूत जी शौनकादि को कथा का श्रवण करा रहे हैं उन्होने नारद जी और सनाकादि की कथा श्रवण कराई इसके पश्चात शौनकादि ने सूत जी से प्रश्न किया, "हे सूत जी महाराज यह श्रीमदभागवत की कथा शुकदेव जी ने परिक्षित को सुनाई, गोकर्ण जी ने धुन्धुकारी को सुनाई तथा सनकादि ने नारद जी को सुनाई हम यह सुनना चाहते हैं कि यह कथा किसने और कब कब सुनाई, आप हम सभी का संसय दुर करने की कृपा करे"

सूत जी बोले, "हे भक्तों भग्वान श्रीकृष्ण जब इस प्रथ्वी से स्वधाम चले गये उसके बाद कलियुग का प्रारम्भ हुआ, कलियुग के तीस वर्ष से कुछ अधिक समय ब्यतीत होने के पश्चात भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को शुकदेव जी ने राजा परिक्षित को कथा सुनानी आरम्भ की थी...कलियुग के दो सौ वर्ष बीतने के बाद आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को गोकर्ण जी ने कथा प्रारम्भ की थी आदि आदि,,,,"

इस अध्याय में कथा की विधि विधान के विषय में चर्चा है ....

मित्रों श्रीमदभागवत जी का माहात्म्य जिसकी पूर्ण व्याख्या छः अध्यायों में हैं उसका पूर्ण व्याख्यान यहीं सम्पन्न होता है, अब हम श्रीमदभागवत जी के बारह स्कन्धों की कथा का रसास्वादन करेंगे.......

यह परमात्मा श्रीकॄष्ण चन्द्र की कृपा से संभव हो पा रहा है........

वर्ना हमें जगत से कहां मुक्ति......ये तो उसकी कृपा है जो अपना नाम अमृत हमें पिलाये जा रहा है.......
     
परमात्मा को तथा उसके रसिक भक्तों को प्रणाम ........


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