मित्रों सप्तम अध्याय के प्रथम भाग में आपने जान कि परम वैरागी संन्त श्री शुकदेव जी ने श्रीमदभागवत जी का अध्यन किया तथा सप्तम अध्याय के द्वितीय भाग में हम जानेंगे कि अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पांच पुत्रों की हत्या की कथा, द्रोपदी की करुणा की कथा तथा नीतिगत विवेक द्वारा अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा को दंड की कथा ....
सूत
जी महाराज कथा के वक्ता हैं और आसन पर विराजमान हैं शौनकादि ऋषियों को कथा सुना रहे
हैं तो सूत जी महाराज कहते हैं, “हे ऋषियों मैं आपको राजर्षि परिक्शित
के जन्म, कर्म और मोक्ष की कथा सुनाता हुं क्यों कि भगवान कृष्ण
के रसमय चरित्र की अनेकों कथाओं का उदय इन सभी वृत्तन्तों से होता है,
सूत
जी कह रहे हैं कि,
“महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका है, पांडवों
की विजय हुई है, दोनों पक्षों के बहुत से योद्धा विरगति को प्राप्त
हो चुके हैं, युद्ध में भीमसेन की गदा के प्रहार से दुर्योधन
की जंघा टूट गई थी, दुर्योधन घायल पड़ा है, पांदवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा जो दुर्योधन का मित्र था
वह अपने मित्र के दुख को देखकर अत्यन्त दुखी हो रहा था,
अश्वत्थामा
के मन में पाप आ गया चूंकि वह था ब्राम्हण का पुत्र परन्तु मित्रता दुर्योधन से थी
सो संग दोष के कारण वह पापी प्रवृत्ति का हो गया था, उसने देखा कि
पांडवों ने उसके मित्र को कितना कष्ट दिया है तमाम योद्धाओं का अन्त हो चुका है,
दुर्योधन के सारे भाई विरगति को प्राप्त हो गये हैं स्वयं दुर्योधन जीवित
से भी बुरी अवस्था में कराह रहा है सो अश्वत्थामा ने निश्चय किया कि वह छ्ल पूर्वक
पांडवों का बध कर देगा I
मन
में इस प्रकार की पापावृत्ति का चिंतन करते हुए अश्वत्थामा ने योजना बनाई कि आज रात
वह उस शिविर में जायेगा जहां पांडव रात्रि विश्राम करते हैं और सोते हुए पांडवों की
हत्या कर उनके सिर अपने घायल मित्र को भेंट करेगा, जिससे उसके मित्र
का दुख कुछ कम होगा……
परन्तु
जिसकी रक्षा स्वयं भगवान कृष्ण कर रहे हैं उसे कौन मार सकता है पांडव जिस शिविर में
विश्राम करते थे वहां भगवान श्री कृष्ण गये और पांचो पांडवों को किसी कार्यवश वहां
से लिवा ले गये अंततः रात्रि विश्राम
के लिये पांडव उस शिविर में नहीं गये, रात्रि में अश्वत्थामा
पांडवों के शिविर में जाता है रात्रि में अन्धकार था और शिविर में पांडव नहीं बल्कि
द्रोपदी के पांचो पुत्र सोए हुए थे I
अश्वत्थामा वहां सोते हुए द्रोपदी के पांचो पुत्रों
के सिर काट कर उनकी हत्या कर देता है तथा उनके सिर लेकर अपने मित्र दुर्योधन के पास
जाता है और कटे हुए सिर अपने मित्र को यह समझ कर भेंट करता है कि उसने पांचो पांडवों
की हत्या कर दी है परन्तु अंधेरे में उसने हत्या तो द्रोपदी के पुत्रों की की थी,
अश्वत्थामा कटे हुए सिर दुर्योधन को दिखाने जाता है उसके मन में विचार
है कि दुर्योधन जो अत्यन्त दुखी है वह अपने शत्रुओं के कटे सिर देख कर संन्तुष्ट हो
जायेगा, परन्तु दुर्योधन जब द्रोपदी के पुत्रों के कटे हुए सिर
देखता है तो वह और अधिक दुखी हो जाता है, जिस दुर्योधन के लोभ
के कारण महाभारत हुई, जिसके भाई युद्ध में मार दिये गये,
उसने देखा कि उसके शत्रु पांडवों के पुत्रों के कटे सिर तो दुर्योधन
को भी यह अच्छा नहीं लगा वह दुखी हुआ उसने अश्वत्थामा से कहा मित्र तुम तो ब्राम्हण
हो और तुमने इस प्रकार हत्या की यह अत्यन्त नीच कृत्य है निन्दनीय है…..
उधर
द्रोपदी ने जब अपने पुत्रों की हत्या का समाचार सुना तो द्रोपदी अत्यन्त दुखी हो गई, उसके नेत्रों में अश्रु भर आये,
विलाप करने लगी, अर्जुन द्रोपदी को धीरज बंधाने
का प्रयास कर रहे हैं, द्वारिका नाथ कृष्ण द्रोपदी को विलाप करते
देख स्तब्ध हैं देख रहे हैं जिस द्रोपदी की परमात्मा ने हर विपदा में सहायता की आज
वह द्रोपदी अधीर हो कर विलाप कर रही है, उसके पांचो पुत्रों की
आज अश्वत्थामा ने छल से हत्या कर दी, द्रोपदी ने विलाप करते हुए
कृष्ण की ओर देखा मानो कह रही हो, “हे केशव अब तो युद्ध भी समाप्त
हो चुका है, राज्य की प्राप्ति हो चुकी है और कपट पूर्वक मेरे
निरपराध पुत्रों की हत्या कर दी अश्वत्थामा नें”
द्वारिका
नाथ निष्ठुर खड़े द्रोपदी को विलाप करता देख रहे हैं, भगवान की लीलाओं
को कौन समझ सकता है, परमात्मा ने तो पांडवों की सुरक्षा की थी,
और फ़िर कौन जन्मता है और कौन मृत्यु को पाता है यह तो सिर्फ़ लीला है,
सभी पात्रों में है तो मेरा गोविन्द ही…..
अर्जुन
भी दुखी हैं परन्तु द्रोपदी का विलाप से अर्जुन को और दुख हो रहा है अर्जुन प्रतिज्ञा
करते हैं कि जब तक अश्वत्थामा का सिर काट कर नहीं लाउंगा तब तक द्रोपदी के आंसू नहीं
पोछुंगा,
और द्रोपदी से कहते हैं कि पुत्रों के अन्तिम संस्कार के बाद ये द्रोपदी
तुम अश्वत्थामा के सिर पर पैर रख कर स्नान करना….
अर्जुन
अपने अस्त्र शास्त्र धारण करके अश्वत्थामा को मारने के लिये चल पड़ते हैं रथ का संचालग
श्याम सुन्दर कर रहे हैं,
अश्वत्थामा को पता लग गया कि अर्जुन उससे बदला लेने के लिये आ रहा है,
अश्वत्थामा भी अत्यन्त भयभीत है वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए रथ
पर चढ कर भागता इस तरह भागता है जैसे शिव के भय से बृम्हा भागे थे, अर्जुन के रथ को स्वयं भगवान कृष्ण चला रहे थे और अश्वत्थामा के रथ का पीछा
कर रहे थे, अश्वत्थामा भय से भाग रहा था अर्जुन उसे काल के समान
प्रतीक हो रहा था, जैसे जैसे अर्जुन का रथ उसके रथ के नजदीक आत
जा रहा था उसका भय बढता जा रहा था, अश्वत्थामा के रथ के घोड़े
थक चुके थे और जब अश्वत्थामा को लगा को अब वह अर्जुन से बचकर भाग नहीं पाएगा तो उसने
भय वश अर्जुन पर ब्रम्हास्त्र चला दिया,,,,
ब्रम्हास्त्र
के प्राभाव से चारों दिशाओं में प्रचण्ड प्रकाश फ़ैल गया, अत्यन्त भयानक वातवरण निर्मित हो गया, अर्जुन इससे अत्यन्त
भयभीत हो गया उसे अपने प्राण संकठ में प्रतीत होने लगे और जब जीव भयभीत होता है तो
परमात्मा को पुकारता है अर्जुन श्री कृष्ण की विनती करने लगते हैं, हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर आप भक्तों के भयों का अन्त करने वाले हैं हे गोविन्द
मेरे प्रांण संकठ में हैं मेरी रक्षा करो……
परमात्मा श्री कृष्ण ने देखा
कि ब्रम्हास्त्र के कारण यह महान तेजमय वातवरण हो गया है जिससे अर्जुन भी भयभीत हो
गया है अतः परमात्मा ने अर्जुन से कहा हे अर्जुन, अश्वत्थामा
ने तुम्हे लक्ष्यं बनाकर ब्रम्हास्त्र चलाया है, ब्रम्हास्त्र
को निष्क्रिय करने की शक्ति किसी भी शस्त्र में नहीं है हां अश्वत्थामा इसे चलाना जानता
है परन्तु वह इसे निष्क्रिय करना अथवा लौटाना नहीं जानता है, हां एक उपाय है कि ब्रम्हास्त्र के तेज को सिर्फ़ ब्रम्हास्त्र के द्वारा ही
समाप्त किया जा सकता है I
देवकी नन्दन के मुख से इस प्रकार
के वचनों को सुनकर अर्जुन ने तुरन्त ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया, दोनों ब्रम्हास्त्र तेज प्रलयकारी अग्नि के समान ब्रम्हाण्ड में टकराए,
भयंकार आवाज और प्रकाश से सम्पूर्ण बम्हाण्ड जगमगा गया I
अर्जुन की आंखे क्रोध से लाल हो रही
थीं, उसने रथ से कूड कर अश्वत्थामा को पकड़ लिया और रस्सी से बांध
कर रथ में डाल दिया, अर्जुन अश्वत्थामा को लेकर अपने शिविर में
आते हैं और विलाप कर रही द्रोपदी के सामने बंधे हुए अश्वत्थामा को पशुओं की भांती खीच
कर डाल देते हैं, मानो द्रोपदी से अर्जुन कह रहे हों लो द्रोपदी
तुम्हारे पुत्रों का हत्यारा ले लो इससे बदला I जिस समय अश्वत्थामा द्रोपदी के सम्मुख
लाया गया, उस समय द्रोपदी विलाप कर रही थी, और अश्वत्थामा का मुंह सर्म से झुका हुआ था उसने काम ही इतनी नीचता का किया
था I
द्रोपदी के सोते हुए पुत्रों की
हत्या करने वाले अश्वत्थामा को अर्जुन खिंच कर द्रोपदी के सामने लाते हैं द्रोपदी आंगन
में बैठी है वहीं उसके पांचो पुत्रो के शव पड़े हैं, अश्वत्थामा
का चेहरा शर्म से झुका हुआ था परन्तु द्रोपदी नें जो किया वह एक भक्त ही कर सकता है
इस भारत की नारी, एक वीर मां ही कर सकती है, द्रोपदी ने देखा कि अश्वत्थामा को इस प्रकार अपमानित किया जा रहा है तो द्रोपदी
को दुख हुआ, द्रोपदी ने सर्वप्रथम अश्वत्थामा को पहले प्रणाम
किया फ़िर अर्जुन से कहती है मेरे सामने ब्राम्हण का अपमान मत करो, गुरू पुत्र हैं जो विद्या गुरु द्रोणाचार्य जी ने अपने पुत्र को नहीं सिखाई
वह विद्या उन्होने आपको सिखाई हैऔर से गुरु के पुत्र हैं अश्वत्थामा इन्हें छोड़ दो
छोड़ दो, द्रोपदी कहती है ये ब्राम्हण हैं, हम सभी के लिये पूजनीय हैं, जिनकी कृपा से आप लोगों ने
शास्त्र संचालन आदि का ज्ञान हुआ उन गुरु द्रोणाचार्य और गुरु मां कृपी के पुत्र हैं
अश्वत्थामा जी, आप देखिये ये अश्वत्थामा नहीं ये साक्षात आपके
गुरु द्रोणाचार्य जी खड़े हैं हमारे समक्ष, गुरु द्रोणाचार्य जी
की मृत्यु के पश्चात माता कृपी इन्हीं अश्वत्थामा के मोह और ममता के कारण सती नहीं
हो पाईं, हे आर्यपुत्र आप तो परम धर्मज्ञ हैं जिस गुरु परिवार
को नित्य पूजा वन्दना करनी चाहिये उसे दुःख पहुंचाना , पीड़ित
करना, व्यथित करना आपके अनुकूल नहीं है, द्रोपदी को याद आ रही है अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के बध के लिये की गई प्रतिज्ञा
द्रोपदी कहती हैं कि आज मैं अपने पुत्रों के मर जाने से आज दुख पा रही हुं,परन्तु मैं नहीं चाहती की कल गुरु मां भी इसी दुख को प्राप्त हों I
भारत की नारी अपने पांच पांच पुत्रों
की हत्या करने वाले को प्रणाम करती है उससे बैर भाव नहीं रखती और प्रणाम इसलिए करती
है कि वह ब्राम्हण है, भागवत की कथा हमें जीवन का दर्शन सिखा
रही है कि किसी से शत्रुता का भाव नहीं रखना है, अश्वत्थामा द्रोपदी
के व्यवहार को देखकर दृवित हो गया वो विचार करता है कि मैंने आज तक द्रोपदी के बारे
में जितना मैंने सुना वह कम था द्रोपदी तो पूजनीय है वन्दनीय़ है आचार्य है द्रोपदी
व्यवहारिकता की I
द्रोपदी ने यह दर्शन कराया कि आखिर गोविन्द के भक्त के क्या आचरण होने चाहिये करूणा और दया की प्रतिमूर्ति हैं द्रोपदी....
पत्नी का परम कर्तव्य है कि वह सदैव
अपने पति को धर्माचरण करने के लिये प्रेरित करे, द्रोपदी ने आज
जो वचन कहे युधिष्टिर जी ने उन वचनों का समर्थन किया, साथ ही
अर्जुन, नकुल, सहदेव, आदि सहित भगवन कृष्ण ने भी समर्थन किया, परन्तु भीम ने
कहा यह हत्यारा है इसने बाल हत्या की है यह मृत्यु दंड का अधिकारी है I
आखिर कृष्ण जो द्रोपदी के भाव से
प्रसन्न थे उन्होने नीतिगत बात करते हुए कहा, “चूंकि अश्वत्थामा
ब्राम्हण झै अतः इसे मृत्यु दंड नहीं दिया जाना चाहिये परन्तु यह बाल हत्या का दोषी
भी है अतः इसे बिना दंड के छोड़ना भी उचित नहीं इसे मृत्यु दंड सम दण्ड देना चाहिये”
अर्जुन
कृष्ण के हृदय की बात जान गये उन्होने विचार
किया कि इसके केश काट दिये जायें तथा इसके मस्तक में स्थित मणी निकाल
ली जाये इससे नीतिगत रहते हुए इसे दण्ड दिया जा सकता है एक सम्मान जनक स्थिति वाले
ब्राम्हण के केश काट दिये गये और उस्के मस्तक से मणि निकाल ली गई, यह अपमान अश्वत्थामा के लिये मृत्यु से भी अधिक है….
ऐसा विचार करते हुए अर्जुन ने तलवार निकाली
और अश्वत्थामा के सिर को मूड़ दिया तथा उसके मस्तक से मणि को निकाल दिया, फ़लस्वरूप अश्वत्थामा तेज हीन हो गया
यह स्थिति उसके लिये मृत्यु तुल्य थी,
इसके
पश्चात द्रोपदी,
सहित समस्त पांडवों दुखी थे और उन्होने सभी मृत आत्माओं का पिण्ड दानादि
कर्म समपन्न कराए……..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें