रविवार, 16 अगस्त 2015

श्रीमद्भागवत कथा : प्रथम स्कन्ध, (ग्यारहवां अध्याय) श्रीकृष्ण का द्वारका में स्वागत


सौभाग्यशाली मित्रों जय श्री कृष्ण, परमवन्दनीय अकारणकरूणावरूनालय भक्तवान्छाकल्पतरू श्री कृष्ण चन्द्र जी के चरणों में बरम्बार प्रणाम है, आप सभी सौभाग्यशाली  मित्रों को भी प्रणाम है आप सभी पर परमात्मा की अत्यन्त कृपा है कि आप परमात्मा की रसोमय लीला का रसास्वादन कर रहे हैं I

भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से वापस द्वारका वापस आ रहे हैं यह समाचार द्वारका पहुंच चुका था, नगर वासियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई थी, सभी जगह उत्सव जैसा माहौल था, सभी लोग द्वारिकाधीश के स्वागत के लिये तौयारी कर रहे हैं I

द्वारिकाधीश जिस दिन से हस्तिनापुर गये उस दिन से नगरवासी अपने स्वामी के बिना रह रहे हैं वियोग में जी रहे हैं, द्वारिका पुरी अपने स्वामी के बिना है, श्याम सुन्दर के बियोग में नगर के लोगों की विरह वेदना वह स्वयं ही जानते हैं, सारी द्वारिका उदास रहती है, समय से लोग कोई ना काम करते हैं ना सोते हैं ना खाते हैं और जहां हर पल उत्सव रहता था वहां शान्ती और उदासी छाई रहती है बिना श्याम सुन्दर के द्वारिका बिना प्राणों के शरीर सी हो गई थी, जैसे बिना सूर्य के जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है ठीक वैसे ही द्वारिका के सूर्य भगवान कृष्ण के बिना द्वारिका पुरी का हाल था I

भगवान श्याम सुन्दर द्वारिका की सीमा पर पहुंच गये, नगर वासी द्वारिका की सीमा पर अपने प्रभू का बेसब्री से इन्तिजार कर रहे थे, भगवान जैसे ही द्वारिका की सीमा पर पहुंचे नगर वासियों में हर्ष की लहर दौड़ गई, भगवान के दर्शन करके नगर वासीयों के हाल कुछ ऐसे थे जैसे वर्षा के मौसम में पहली बरसात के बाद तपन से सूख रहे पौधों का होता है, पहली वर्षा से लहलहा उठते हैं पौधे, वैसे ही हर्षित नगर वासियों की आंखे छलक रही हैं I

भगवान जैसे ही द्वारिका की सीमा में प्रवेश करते हैं वैसे ही भगवान ने अपना पाञ्चजन्य नामक शंख को अपने सुर्ख लाल अधरों पर धरकर फ़ूंका, भगवान के शंख की ध्वनि सुनकर समस्त नगर वासियों को यह सूचना मिल गई कि भगवान द्वारिकाधीश नगर में प्रवेश कर चुके हैं, भगवान शंख बजा कर अपने प्रेमी भक्तों को अपने दर्शन के लिये आमंत्रित कर रहे हैं, भक्त यदि भगवान से दूर है उनके दर्शन से वंचित है और विरह की पीड़ा से पीड़ित भक्त की वेदना से भगवान स्वयं पीड़ित होते हैं तभी तो भगवान ने नगर की सीमा पर पहुंचते ही शंख ध्वनि कर नगर वासियों को सूचना दी थी, भगवान भक्त को आमंत्रित कर रहे हैं कि आओ मुझे अपने दर्शन देने आओ, यदि भक्त भगवान के दर्शन को व्याकुल है तो ऐसे भक्तों के दर्शन के लिये भगवान भी व्याकुल रहता है I

भगवान नगर में प्रवेश कर रहे हैं आज द्वारिका में दीपावली जैसा उत्सव मनाया जा रहा है, पूरा नगर दूल्हन की तरह सजाया गया है, नगर के द्वारों पर केले के खंम्भ लगाये गये हैं, वन्दनवार बांधी गई हैं, ध्वजा-पताकाएं फ़हराई गई हैं रास्तों पर अलंकार-अल्पनाएं-रंगोलियां बनाई गई हैं, समस्त नगर वासियों ने भी सुन्दर सुन्दर वस्त्र धारण किये हैं, भगवान की रथयात्रा नगर में प्रवेश कर चुकी है और धीरे धीरे राजमहल की ओर बढ रही है सभी नगरवासी अपने अपने घरों से पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं महिलाएं मंगल गान कर रहीं हैं, भगवान के दर्शन कर भक्त प्रसन्न हो रहे हैं और भगवान की स्तुति का गाल कर रहे हैं, भगवान सभी से मिल रहे हैं, आपने सेवकों से, नागरिकों से, बन्धु-बान्धवों से सभी से भगवान मिल रहे हैं  जिसकी जैसी योग्यता है उसी अनुसार भगवान उससे मिल रहे हैं  किसी को प्रणाम कर रहे हैं, किसी का अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं, किसी को गले लागा रहे हैं, किसी से हांथ मिला रहे हैं और किसी से सिर्फ़ मुस्कुराकर स्नेह का आदान प्रदान कर रहे हैं  भगवान द्वारिका वापस आये हैं सभी से भगवान मिल रहे हैं भेंट कर रहे हैं I

नगर वासी भगवान का दर्शन कर रहे हैं उनके सुन्दर मोहक स्वरूप को निहार निहार अपने हृदय में बसाने का प्रयास कर रहे हैं, हर नगर वासी चाहता है कि ये दर्शन जो देवताओं को भी दुर्लभ हैं ये निरन्तर उन्हें होते ही रहें भगवान उनके सामने से हटें ही नहीं, नगर के नर नारी भगवान के दर्शन कर कर आनन्दित हो रहे हैं नृत्य कर रहे हैं उत्सव मना रहे हैं, भगवान की रथ यात्रा नगर के मार्गों से होती हुई महल की तरफ़ बढ रही है, यहां भगवान कृष्ण जो रथ पर विराजमान हैं उनके रूप का वर्णन है जिसे पढकर लगता है जैसे सम्पूर्ण बृम्हाण्ड का सौन्दर्य द्वारिकाधीश में समाहित हो गया है, और सम्पूर्ण बृम्हाण्ड का आनन्द द्वारिका में आ गया है,

भगवान का शरीर नीलमणि के समान दमक रहा है पीताम्बर धारण किये हैं गले में सुन्दर कमल के पुष्पों की माला है सिर पर मोर पुकुट धारण किये हैं गोविन्द उनके कमल के अमान नैन अपने भक्तों के टटोल टटोल दर्शन कर रहे हैं, श्याम सुन्दर आज इतने आनन्दित और प्रफ़ुल्लित हैं लगता है सैकड़ों कामदेवों का सौन्दर्य आज उनमें समाहित हो गया है, उनके निरन्तर दर्शन करते रहने के बाद भी नैन तृप्त नहीं होते ऐसा है सौन्दर्य हमारे श्याम सुन्दर का I

रथ यात्रा महल के निकट पहुंच गई है, भगवान सबसे पहले अपने माता-पिता के महल में गये हैं, भगवान कृष्ण की देवकी आदि सात माताएं हैं भगवान ने सभी माताओं के चरणों में सिर रख कर प्रणाम किया है, माताओं का वात्सल्य उमड़ पड़ा है, माताएं गोविन्द को गोद में बिठाकर दुलरा रही हैं बार बार कृष्ण को अपने हृदय से लगा रही हैं, बालक चाहे जितना भी बड़ा हो जाये माता के लिये बालक ही रहता है, माताएं इतनी आनन्दित हैं कि उनके नेत्र अश्रुपूरित हो गये, मातओं ने मेरे गोविन्द को  आशिर्वाद दिया है, माताओं से मिलने के बाद गोविन्द अपनि रानियों के महलों की ओर प्रस्थान करते हैं I

भगवान कि सोलह हजार रानियां जो अलग अलग महलों में रहती हैं, वह सभी अपने अपने महल की अटारियों पर चढकर अपने प्राण प्रियतम को देख रही हैं, और मन-ही-मन परमात्मा का दर्शन कर रही हैं तभी भगवान का रथ राजप्रसाद में प्रवेश करता है सभी रानियां उनका दर्शन कर रही हैं, सभी रानियों के नेत्र अश्रुओं से पूरित हैं अपने प्रियतम से मिलन की आनन्दानुभूति से द्रवित हो गई हैं रानियां, व्यास जी ने तो भागवत में लिखा है कि कृष्ण की रानियों ने उनका आलिंगन किया, परन्तु मर्यादाओं का पालन करते हुए उन्होने अपनी अपनी गोद में जो पुत्र ले रक्खे थे उन पुत्रों को अपने पिता अर्थात भगवान श्याम सुन्दर से मिलाने के बहाने आलिंगन किया,,,,श्याम सुन्दर अपनी रानियों से मिल रहे हैं सभी रानियां यह अनुभव कर रही हैं कि उनके प्रियतम कृष्ण उनसे मिल रहे हैं I

इस अध्याय में व्यास जी ने परमात्मा के अपने नगर द्वारका में वापस आने की लीला का वर्णन किया है अगले अध्याय में हम सभी परिक्षित जी के जन्म की लीला का रसस्वादन करेंगे…