तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः II१II
श्रीमदभागवत जी के महात्म के प्रथम
अध्याय के पहले श्लोक में सत-चित-आनन्द स्वरूप परमात्मा की स्तुति की गई है नमन
किया गया है जिसके द्वारा इस जगत की उत्पत्ति, पालन
तथा विनाश आदि हो रहा है,
तथा जो इस जगत के
प्राणिंयों को उसके जीवन में व्यापत
त्रितापों (दैहिक,
दैविक तथा भौतिक
तापों) अर्थात कष्टों से मुक्ति प्रदान
करने वाला है I
श्लोक में बताया
गया कि परमात्मा सत-चित-आनन्द स्वरूप है सत अर्थात परमात्मा नित्य है शाश्वत है, चित अर्थात शुद्ध चैतन्य स्वरूप तथा आनन्द से
परिपूर्ण है तथा वही पर्मात्मा जो इस सम्पूर्ण विश्व का इस बृम्हांड का
उत्पत्तिकर्ता है जो इस सम्पूर्ण विश्व का पालन कर रहा है तथा नवश्रजन के लिये इस
विश्व का विनाश कर्ता है उस पर्मात्मा श्री कृष्ण को हम सभी जीव नमन करते हैं, यहां श्रीकृष्ण कहा है श्री अर्थात परमात्मा की
शक्ति श्री राधा रानी सहित परमात्मा प्रेमाधार कृष्ण को नमन किया गया है I
यं
प्रव्रजन्तमनुपेतम्पेतकृत्यं
द्वैपायनो
विरहकातर आजुहाव I
पुत्रेति
तन्मयतया तरवोsभिनेदुस्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोsस्मि II२II
श्रीमदभागवत जी के महात्म
के प्रथम अध्याय के द्वितीय श्लोक में व्यास जी के पुत्र श्री शुकदेव मुनि को नमन
किया गया है, व्यास जी के पुत्र श्री शुकदेव मुनि का यज्ञोपवीत
संस्कार नहीं हुआ था तथा उन्हें किसी भी प्रकार के लौकिक जगत के वैदिक अनुष्ठान का
अवसर भी नहीं आया था उससे पूर्व ही श्री शुकदेव मुनि स्वेच्छा से सन्यास गृहण करने
के लिये घर से चल पड़े, इस दृश्य के देख उनके पिता व्यास जी उनकी विरह से
व्याकुल होकर उनके पीछे पीछे चल पड़े और उन्हें पुत्र-पुत्र कहकर पुकारने लगे कि
बेटा कहां जा रहे हो I श्री
शुकदेव मुनि जन्म से ही आत्म ज्ञानी थे
आत्म भाव में निरन्तर लीन रहते थे, वो वस्त्र भी धारण नहीं करते थे वो परमात्म भाव में
तल्लीन थे सो उन्होने पिता की आवाज नहीं सुनी, और उनकी तरफ़ से वृक्षों ने व्यास जी उत्तर दिया था, ऐसे
परमात्म भाव में निरनतर तल्लीन रहने वाले शुकदेव मुनि को नमन है I
नैमिषे सुतमासीनमभिवाद्य महामतिम I
कथामृतरसास्वादकुशलः शौनकोSब्रवीत II३II
श्रीमदभागवत जी के महात्म के प्रथम
अध्याय के तृतीय श्लोक में वर्णन है कि एक बार भगवतरासमृत का पान करने में
अत्यंन्त प्रवीण शौनकादि मुनिजन
नैमिषारण्य नामक ऋषियों की पवित्र तपोभूमि में एकत्र हुए और मुख्य आसन पर आसीन श्री
वेदव्यास जी के परम शिष्य श्री सूत जी महाराज को नमन कर रहे हैं और उनसे निवेदन कर
रहे हैं I
"शौनक उवाच"
अज्ञानध्वान्तविध्वंसकोटिसूर्यसमप्रभ
I
सूताख्याहि कथासारं मम कर्णरसायनम II४II
श्रीमदभागवत जी के महात्म
के प्रथम अध्याय के चतुर्थ श्लोक में वर्णन है कि भगवत-अनुरागी पुण्यात्मा शौनकादि
मुनिजन श्री वेदव्यास जी के परम शिष्य श्री सूत जी महाराज से प्रेमपूर्ण भाव से कह
रहे हैं कि हे सूत जी महाराज आप परम ज्ञानी हैं आप श्री वेदव्यास जी के परम शिष्य
हैं आपका ज्ञान आज्ञान स्वरूपी अन्धकार को समाप्त करने के लिये करोड़ों सूर्यों के
समान है, हम परमात्मा की आनन्दमयी अमृत स्वरूप कथा रसायन का
पान करना चाहते हैं I यहां एक बात विशेष ध्यान देने वाली है कि शौनकादि ने
परमात्म कथासार को रसायन कहा अर्थात परमात्मा की कथामृत तरल है द्रव रूप है जिसे
ग्रहण करने के लिये चबाना या खाना नहीं पड़्ता किसी भी प्रकार का उद्योग नहीं करना
पड़्ता परमात्म कथा अमृत रसायन है जो स्वयं कर्ण ग्रहण करने से धन्य हो जाते हैं I
भक्तिज्ञानविरागाप्तो विवेको वर्धते
महान I
मायामोहनिरासश्च वैष्णवैः क्रियते
कथम II५II
श्रीमदभागवत जी के महात्म
के प्रथम अध्याय के पंचम श्लोक में वर्णन है कि भगवत-अनुरागी पुण्यात्मा शौनकादि
मुनिजन श्री वेदव्यास जी के परम शिष्य श्री सूत जी महाराज से प्रेमपूर्ण भाव से कह
रहे हैं कि हे सूत जी महाराज भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से प्राप्त होने वाले परम विवेक की
वृद्धि किस प्रकार होती है तथा परमात्मा सच्चिदानन्द विष्णु के अनुरागी भक्त
वैष्णव जन किस प्रकार इस जगत की माया तथा मोह से मुक्ति की अवस्था प्राप्त करते
हैं I इस श्लोक में यह पूर्णतः स्पष्ट है कि पर्मात्मा की
भक्ति में लीन रहने वाले श्री कृष्ण प्रेमी जनों को ज्ञान की उपलब्धि होती है तथा
वह ज्ञान ही वैराग्य को घटित करता है और इस सबसे उच्च श्रेणी की बात यह कि भक्ति, ज्ञान
तथा वैराग्य से भी ऊपर की एक अवस्था है जिसमें परमात्म जन निरन्तर परम विवेक की
जाग्रत अवस्था में रहते हैं I यहां एक चीज यह भी स्पष्ट है कि परमात्म प्रेमी
वैष्णव जन माया के प्रभाव से मुक्त रहते हैं I
शौनक जी, सूत जी महाराज से कह रहे हैं कि महाराज वर्तमान
समय में जब घोर कलयुग का प्रभाव हो चुका है कलियुग के प्रभाव वश अधिकाधिक जीवों क
स्वभाव आसुरी हो गया है अर्थात जीवों में कलियुग के प्रभाव वश प्रेम, सहिष्णुता,
दया आदि का अभाव
हो चुका है, और मनुष्य निरन्तर क्लेशों से आक्रान्त
होने को तत्पर रहता है,
आपने स्वयं के
लिये अशान्ति का वातवरण निर्मित करने में तत्पर रहता है I
शौनक जी कह रहे हैं कि हे सूत जी आप
हमें कोई ऐसा शाश्वत साधन बताएं जिससे प्रमात्मा प्राप्ति के साथ साथ मनुष्य में
परम पवित्रता भी स्थापित हो सके,
और परमात्मा कृष्ण
की प्राप्ति और प्रेम का प्राकट्य भी हो सके I हमें
ऐसा साधन बतलाएं I
हे सूत जी, चिन्तामणि
सिर्फ़ उस सुख की उपलब्धि करा सकती है जो लौकिक है अर्थात जो दर्शनीय है जिसका
अवलोकन किया जा सकता है तथा कल्प वृक्ष अधिकाधिक भौतिक सम्पत्तियां प्रदान कर सकता
है जिनसे स्वर्ग का सा सुख मिल सकता है परन्तु गुरु तो प्रसन्न होकर परमात्मा की
प्राप्ति करा देता है, और योगियों के लिये भी जो दुर्लभ परमात्मा का वैकुण्ठ
धाम है उसे शिष्य को प्रदान कर देता है I
शौनकादि ऋषियों के प्रश्न करने के
पश्चात सूत जी अतिप्रसन्न भाव से बोले कि ये ऋषियों आपके हृदय में परमात्मा के
लिये जो प्रेम है भक्ति है उससे मैं अत्यंन्त ही प्रसन्न हूं मैं अब तुम लेगों के
सम्मुख उस परम परमात्मा के निष्कर्ष सिद्धन्त का वर्णन करता हूं जिससे मनुष्य इस
जगत के जन्म मरण के भय से मुक्त हो जाता है परमात्मा के प्रति श्रद्धा, भाक्ति और समर्पण को निरन्तर बढाने वाला है, जिसके परिणामतः परमात्मा श्री कृष्ण प्रसन्न
होते हैं, मैं तुम्हे वह साधन बता रहा हुं I सावधानी पूर्वक चित्त एकाग्र कर
सुनें I
श्री शुकदेव मुनि ने
श्रीमद्भागवत शास्त्र की जो व्याख्या की है कथा सुनाई है वह आज कलयुग में मनुष्यों
के निरनतर जीवन और मृत्यु के चक्र में होने वाले कष्ट से मुक्ति प्रदान करने वाली
है, मनुष्य के मन की शुद्धि का सर्वोत्तम साधन है यह
श्रीमद्भागवत जी की कथा, यह कथा सिर्फ़ उन मनुष्यों को उपलब्ध होती है जिनके
जन्म जन्मान्तर के पुण्य अर्थात शुभ कर्म उदय होते हैं सूत जी के कहने का तात्पर्य
यह है कि श्रीमद्भागवत जी की कथा परमात्मा की कृपा से ही
उपलब्ध होती है I
शेष अगले ब्लाग में पढें,,,,,,
शेष अगले ब्लाग में पढें,,,,,,
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंMost useful and essential spiritual knowledge. I appreciate this much. Regards
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्णा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
श्री कृष्ण जी कभी दर्शन भी देते हैं भक्ति में हमें
हटाएंBahut accha
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमुझे जबाब जरूर देना भैया जी
जवाब देंहटाएंमुझे मुबाइल में जबाब कब तक मिल जाएगा
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंजय भागवत जय भागवत
जवाब देंहटाएंHare Krishna ati sundar
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंJay radha madhav
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
जवाब देंहटाएंnibs
जवाब देंहटाएंअद्भुत है भगवान की महिमा🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय जय श्री राधे राधे जी 🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण
Ati aanandmayi katha sdhanyabad aap sbhi ko shrimad Radhe Radhe...
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे कृष्णा
जवाब देंहटाएं9129659241
पंडित ऋतिक मिश्रा पारी
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
जवाब देंहटाएंइसकी सम्पूर्ण किताब पीडीएफ में कैसे डाऊनलोड करें
जवाब देंहटाएंGgffghh
हटाएंराधे रॉधे
जवाब देंहटाएंPure adhyay ko Hindi anuvad sahit pradan Karen
जवाब देंहटाएंKripya rukmani aur Krishna NOK jhok ka samvad prastut Karen
जवाब देंहटाएंBahut badhiya
जवाब देंहटाएंBahut sunder hai
जवाब देंहटाएंJai shree krishna ji ki
जवाब देंहटाएंBhagwat Katha
जवाब देंहटाएंShri mad bhagwat Katha
जवाब देंहटाएंRadhe radhe
जवाब देंहटाएंJay shri krishna
जवाब देंहटाएंRadhe radhe
हटाएंMujhe sikhna hai
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