प्रिय पाठकों आप सभी नें
श्रीमदभागवत जी की कथा के प्रथम स्कन्ध की प्रथम अध्याय की कथा में आपका स्वागत
करता हूं, प्रथम अध्याय में सर्वप्रथम मंगलाचरण है किसी भी
कार्य के प्रारम्भ से पूर्व मंगलाचरण किया जाता है और यह आवश्यक भी है ऐसा शास्त्र
कहते हैं
प्रायः ऐसा देखा जाता है कहीं भागवत जी का सप्ताह यज्ञ हो रहा है तो
नित्य कथा प्रारम्भ से पूर्व मंगलाचरण किया जाता है जिसमें परमात्मा का स्मरण और
स्तुति आदि होती हैं प्रायः कुछ लोग जो कथा श्रवण के लिये जाते हैं उनकी धारणा
होती है कि कथा के शुरुवात में पंद्रह से बीस मिनट तो खाली मंगलाचरण होता रहता है
उसके बाद ही कथा में पहुंचें ऐसी धारणा बन जाती है....
परन्तु मित्रों मंगलाचरण
अत्यन्त आवश्यक है किसी भी कथा आदि में मंगलाचरण से पूर्व उपस्थित हों और श्रद्धा
पूर्वक मंगलाचरण में सहभागी बनें, मंगलाचरण से मन शुद्ध होता
है मंगल की कामना होती है मंगलाचरण में जब हम सामूहिक रूप से परमात्मा का ध्यान,
उसका वंदन और स्तुति करते हैं तो हमारा मन एकाग्र हो जाता है चित्त
परमात्मा में लीन हो जाता है,
प्रायः जब हम परमात्मा की ओर
बढते हैं तो हमारे संचित पाप बाधाएं खड़ी करते हैं व्यवधान हमारे धर्माचरण को
अवरोधित करने का प्रयास करते हैं इसी कारण से मंगलाचरण में आर्त भाव से दीन भाव से
परमात्मा से प्रार्थना की जाती है कि हे गोविन्द आपकी कृपा से हम इस कथा सप्ताह
में उपस्थित हुए हैं और हम सात दिन कथा का रसमय आनन्द प्राप्त कर सकें ऐसी आप कृपा
करना, हम अब आपकी शरण में हैं हम आपके दास हैं हमें आप अपनी
शरण प्रदान करें,,,,
परमात्मा की कृपा से ही पूर्णसमर्पण भाव से
कथा आदि का श्रवण संभव होता है.....
मंगलाचरण में परमात्मा की स्तुति-प्रार्थना की गई,
हे प्रभू इस जगत की उत्पत्ति, इसका पालन और
नवसृजन के हेतु से इसका विनाश आपकी इच्छा से ही होते हैं आप इस जगत के सम्पूर्ण
भूतों से अवगत हैं अर्थात आपका निरन्तर समस्त जगत के जीवों आदि से प्रत्यक्ष अथवा
अप्रत्यक्ष सम्पर्क रहता है, आप पूर्ण स्वतंत्र हैं प्रभू,
आपके ऊपर कोई कारण या हेतु नहीं है आप ही पूर्ण परम हैं, आप ही समस्त जगत के मंगलमय के कल्याण के लिये तत्पर रहते हैं ऐसे मंगलमय
परमात्मा का स्मरण और उसकी स्तुति करते हैं उसकी वन्दना करते हुए मंगला चरण पूर्ण
होता है....
वाणी परमात्मा का संकिर्तन करे,
आंखें परमात्मा का की रसमय झांकी का दर्शन करे तो मन की मलीनता
समाप्त होती है, हृदय पवित्र हो जाता है, उसकी वन्दना करते हुए मंगला चरण
पूर्ण होता है और परमात्मा के मंगलचरण हमारे हृदय को पवित्र कर देते हैं....
इसके पश्चात कथा प्रारम्भ होती है,
एक प्राचीन वृत्तांन्त है कि नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थ में
शौनकादि आदि ऋषियों ने भगवत प्राप्ति की इच्छा से सहस्त्र वर्ष में पूर्ण होने
वाले यज्ञ का अनुष्ठान किया, एक दिन सभी ऋषीयों ने परम
ज्ञानी और व्यास जी के शिष्य़ श्री सूत जी का पूजन किया और उन्हे उच्च आसन प्रदान
किया, तत्पश्चात ऋषियों ने सूत जी से पर्श्न किया,
"महाराज, आप पवित्र हृदय हैं, आपने वेद, पुराणादि शास्त्रों का विधिपूर्वक अध्यन
किया है, वेद के ज्ञाताओं आदि ने परमात्मा के सगुण तथा
निर्गुण स्वरूप के विषय में जो जाना है उस सबके बारे में आपको व्यवहारिक ज्ञान है
आप परमात्म विषय में भक्त हृदय लोगों को अपनी करूणा के वशीभूत होकर गूढ से गूढ तथा
गुप्त अध्यात्मिक रहस्य सरलता से बतला देते हैं, आपकी करूणा
हम सभी के लिये मात्रवत है, हम सभी आपसे कुछ जानने की
अभिलाषा रखते हैं आप वेद शास्त्र आदि के विषय में परम ज्ञानी हैं तो कृपया यह
बतलाएं कि वेद शास्त्र आदि में वर्तमान कलियुगी मनुष्य के के परम कल्याण के लिये
कौन सा साधन सहज और सरल है ? क्यों कि आज के कलियुग में
मनुष्यों की आयु भी कम होती है, और मनुष्य की परमात्मा की
भक्ति साधना आदि में रुचि और प्रवृत्ति भी कम हो गई है लोग आलसी हो गये हैं तथा
समस्या और बाधाओं से गृस्त रहते हैं और सबसे मुख्य समस्या यह है कि शास्त्र भी
तमाम हैं जिसके कारण भी मनुष्य भृमित हो जाता है अतः हम सब आपसे यह जानना चाहते
हैं कि वर्तमान कलियुग में ऐसा कौन सा सरल और सुगम साधन है जिससे मनुष्य पापों से
मुक्त हो सकें और उनके अन्तः करण की शुद्धि हो सके तथा वो पवित्र हृदय से मुक्ति
को प्राप्त करने में सफ़ल हों,,,"
इसके वाद ऋषियों ने पुनः सुत जी से कहना
प्रारम्भ किया, "हे परम श्रध्येय सूत जी,
आप हम पर करुणा करके हमारे सम्मुख भक्त वत्सल श्री कृष्ण के अवतरण
के रसमय वर्णन को प्रस्तुत करिये, हम सभी उनकी लीला का श्रवण
करना चाह्ते हैं तथा यह भी वर्णन करें कि धर्मपालक श्रीकृष्ण जब इस धरती से प्रयाण
कर गये तो इस धरती पर धर्म की रक्षा किसके द्वारा की गई,,,,,अर्थात
धर्म भगवान कृष्ण के जाने के बाद किसकी शरण में गया...........
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